Story In Hindi अर्थात इस article में हम पढेंगे हिंदी कहानी संग्रह(Hindi Stories),हमने आपके लिए बेहतरीन हिंदी कहानियों का संग्रह किया है,यह कहानियां आपको जरुर पसंद आएँगी.
लेख-सूची (Table of Contents)
Story In Hindi: हिंदी कहानी संग्रह(Hindi Stories)
नीचे मैंने Best Hindi Stories का collection दिया है हर कहानी में कोई न कोई सीख जरुर छुपी हुई है,कृपया कहानी का आनन्द ले:
1. किसका पानी अच्छा / अकबर बीरबल
Story In Hindi: एक बार अकबर ने भरे दरबार में अपने दरबारियो से पूछा, “बताओ किस नदी का पानी सबसे अच्छा है?”
सभी दरबारियो ने एकमत से उत्तर दिया, “गंगा का पानी सबसे अच्छा होता है”
लेकिन बादशाह के प्रश्न का उत्तर बीरबल ने नही दिया उसे मौन देखकर बादशाह बोले, “बीरबल तुम चुप क्यो हो?”
बीरबल बोले, “बादशाह हुजूर पानी सबसे अच्छा यमुना नदी का होता है”
बीरबल का यह उत्तर सुनकर बादशाह को बड़ी हैरानी हुई और बोले, “तुमने ऐसा किस आधार पर कहा है जबकि तुम्हारे धर्मग्रंथो में गंगा नदी के पानी को सबसे शुद्ध व पवित्र बताया गया है और तुम कह रहे हो कि यमुना नदी का पानी सबसे अच्छा होता है”
बीरबल ने कहा, “हुजूर मै भला पानी की तुलना अमृत के साथ कैसे कर सकता हूँ . गंगा में बहने वाला पानी केवल पानी नही बल्कि अमृत है इसीलिए मैंने कहा था कि पानी यमुना का सबसे अच्छा है” बादशाह और सभी दरबारी निरुत्तर हो गए और उन्हें मानना पड़ा कि बीरबल सही कह रहे है.
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2. अक़्लमंद हंस / पंचतंत्र
Story In Hindi: एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था. उस पर बहुत से हंस रहते थे. उनमें एक बहुत सयाना हंस था. वह बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी था. सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे. एक दिन उसने एक नन्ही-सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया. ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा
“देखो, इस बेल को नष्ट कर दो. एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुँह में ले जाएगी.”
एक युवा हंस हँसते हुए बोला,
“ताऊ, यह छोटी-सी बेल हमें कैसे मौत के मुँह में ले जाएगी?”
सयाने हंस ने समझाया,
“आज यह तुम्हें छोटी-सी लग रही हैं. धीरे-धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी. फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी. कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएँगे.”
दूसरे हंस को यक़ीन न आया,
“एक छोटी सी बेल कैसे सीढ़ी बन जाएगी?”
तीसरा हंस बोला,
“ताऊ, तू तो एक छोटी-सी बेल को खींच कर ज्यादा ही लम्बा कर रहा है.”
किसी ने कहा, “यह ताऊ अपनी अक्ल का रोब डालने के लिए अर्थहीन कहानी गढ़ रहा है.”
इस प्रकार किसी भी हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया. इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी! समय बीतता रहा. बेल लिपटते-लिपटते ऊपर शाखों तक पहुंच गई. बेल का तना मोटा होना शुरु हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था. सबको ताऊ की बात की सच्चाई नजर आने लगी पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी. एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिआ उधर आ निकला. पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढकर जाल बिछाया और चला गया. साँझ को सारे हंस लौट आए पेड़ पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए. जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा. सब ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे. ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप बैठा था.
एक हंस ने हिम्मत करके कहा,
“ताऊ, हम मूर्ख हैं लेकिन अब हमसे मुँह मत फेरो.’
दूसरा हंस बोला,
“इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं. आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे.”
सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया,
“मेरी बात ध्यान से सुनो. सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना. बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकाल कर जमीन पर रखता जाएगा. वहां भी मरे समान पड़े रहना जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा, मैं सीटी बजाऊंगा. मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना.”
सुबह बहेलिया आया. हंसो ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था. सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया. सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए. बहेलिया अवाक् होकर देखता रह गया.
सीखः बुद्धिमानों की सलाह गंभीरता से लेनी चाहिए.
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3. इन्द्र का अहंकार / अशोक कौशिक
Story In Hindi: शचीपति इन्द्र कोई साधारण देवता नहीं, अपितु एक मन्वन्तर तक स्वर्ग के अधिपति थे. उन्हें इकहत्तर दिव्य युगों तक दिव्य लोकों का साम्राज्य प्राप्त रहा. तब उन्हें गर्व क्यों न होता? जिस प्रकार किसी का गर्व भंग होता है, उसी प्रकार इन्द्र के गर्व का भंग होना भी स्वाभाविक था.
इन्द्र ने एक बार महर्षि दुर्वासा को किसी कारण कुपित कर दिया. महर्षि ने उसे शाप देकर स्वर्ग को ही श्री-विहीन कर दिया. इसके साथ ही इन्द्र को वक्रासुर, विश्वरूप, नमुचि आदि दैत्यों के वध के कारण ब्रह्महत्या के पाप का भागी भी बना दिया. बृहस्पति के परामर्श पर उनको इस सबके लिए पश्चात्ताप करना पड़ा. बलि द्वारा उनका राज्य अपहरण कर लिये जाने पर दुर्दशा भी भोगनी पड़ी.
गोवर्द्धन-धारण, पारिजात-हरण आदि अनेक प्रसंगों के माध्यम से इन्द्र का कई बार मानभंग होता रहा. मेघनाद, रावण और हिरण्यकशिपु आदि ने भी जब भय दिखाया तो अनेक बार इन्द्र को दुष्यन्त, खट्वांग, अर्जुन आदि से सहायता की याचना करनी पड़ी. मेघनाद ने तो इन्द्र को पराजित करके ही इन्द्रजित् पद प्राप्त किया था.
इस प्रकार इन्द्र के गर्व-मन्थन की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं. उन्हीं में से एक कथा यह भी है कि इन्द्र ने एक बार अपना विशाल प्रासाद बनाने का आयोजन किया. इसके निर्माण के लिए विश्वकर्मा को नियुक्त किया गया, जिसमें पूरे सौ वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी भवन पूर्ण न हुआ. इससे विश्वकर्मा बड़े श्रान्त रहने लगे. अन्य कोई उपाय न देख विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी की शरण पकड़ी.
ब्रह्मा जी को इन्द्र पर हँसी आयी और विश्वकर्मा पर दया. ब्रह्मा ने बटुक का रूप धारण किया और इन्द्र के पास जाकर पूछने लगे, “देवेन्द्र! मैं आपके अद्भुत भवन के निर्माण की बात सुनकर यहाँ आया तो वास्तव में वैसा ही भवन देख रहा हूँ. इस भवन के निर्माण में कितने विश्वकर्माओं को आपने लगाया हुआ है?”
इन्द्र बोले, “क्या अनर्गल बात पूछ रहे हैं आप? क्या विश्वकर्मा भी अनेक होते हैं?”
“बस देवेन्द्र! इतने प्रश्न से ही आप घबरा गये? सृष्टि कितने प्रकार की है, ब्रह्माण्ड कितने हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश कितने हैं, उन-उन ब्रह्माण्डों में कितने इन्द्र और कितने विश्वकर्मा पड़े हैं, यह कौन जान सकता है? यदि कोई पृथ्वी के धूलिकणों को गिन भी सके, तो भी विश्वकर्मा अथवा इन्द्र की संख्या तो गिनी ही नहीं जा सकती. जिस प्रकार जल में नौकाएँ दीखती हैं, उसी प्रकार विष्णु के लोमकूप-रूपी सुनिर्मल जल में असंख्य ब्रह्माण्ड तैरते दीखते हैं.”
ब्राह्मण बटुक और इन्द्र में इस प्रकार का वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी वहाँ पर दो सौ गज लम्बा-चौड़ा चींटियों का एक विशाल समुदाय दिखाई दिया. उन्हें देखते ही सहसा बटुक को हँसी आ गयी. इन्द्र को विस्मय हुआ तो उसने बटुक से पूछा, “आपको हँसी क्यों आ गयी?”
“देवराज! मुझे हँसी इसलिए आयी कि यह जो आप चींटियों का समूह देख रहे हैं न, वे सब-की-सब कभी इन्द्र के पद पर प्रतिष्ठित रह चुकी हैं. इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि कर्मों की गति ही कुछ इस प्रकार की है. जो आज देवलोक में है, वह दूसरे ही क्षण कभी कीट, वृक्ष या अन्य स्थावर योनियों को प्राप्त हो सकता है.”
इन्द्र को बटुक इस प्रकार समझा ही रहे थे कि तभी काला मृग-चर्म लिये उज्ज्वल तिलक लगाये, चटाई ओढ़े, एक-ज्ञानी तथा वयोवृद्ध महात्मा वहाँ आ पहुँचे. इन्द्र ने यथासामर्थ्य उनका स्वागत-सत्कार किया. बटुक ने उनसे प्रश्न किया, “महात्मन्! आप कहाँ से पधारे हैं? आपका शुभ नाम क्या है? आपका निवास-स्थान कहाँ है? आप किस दिशा में जा रहे हैं? आपके मस्तक पर चटाई क्यों है तथा आपके वक्षस्थल पर यह लोमचक्र कैसा है?”
आगन्तुक मुनि ने कहा, “बटुकश्रेष्ठ! आयु का क्या ठिकाना, इसलिए मैंने कहीं घर नहीं बनाया, न विवाह ही किया और न कोई जीविका का साधन ही जुटाया. वक्षस्थल के लोमचक्रों के कारण लोग मुझे लोमश कहते हैं. वर्षा तथा धूप से बचने के लिए मैंने अपने सिर पर चटाई रख ली है. मेरे वक्षस्थल के रोम मेरी आयु-संख्या के प्रमाण हैं. जब एक इन्द्र का पतन होता है तो मेरा एक रोआँ गिर पड़ता है. यही मेरे उखड़े हुए कुछ रोमों का रहस्य भी है. ब्रह्मा के दो परार्ध बीतने पर मेरी मृत्यु कही जाती है. असंख्य ब्रह्मा मर गये और मरेंगे. ऐसी दशा में पुत्र, कलत्र या गृह लेकर मैं क्या करूँगा? भगवान की भक्ति ही सर्वोपरि, सर्व-सुखद और दुर्लभ है. यह मोक्ष से भी बढ़कर है. ऐश्वर्य तो भक्ति में रुकावट तथा स्वप्नवत् मिथ्या है.”
बटुक के प्रश्नों का इस प्रकार उत्तर देकर महर्षि लोमश वहाँ से आगे चल दिये. ब्राह्मण बटुक भी वहाँ से अन्तर्धान हो गये.
यह सब देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ. उसके होश और जोश सब ठण्डे हो गये. इन्द्र ने महर्षि लोमश के कथन पर विचार किया कि जिनकी इतनी दीर्घ आयु है, वे तो घास की एक झोंपड़ी भी नहीं बनवाते, केवल चटाई से ही अपना काम चला लेते हैं. फिर मेरी ऐसी क्या आयु है, जो मैं इस विशाल भवन के चक्र में पड़ा हुआ हूँ?
फिर क्या था! इन्द्र ने विश्वकर्मा को बुलाकर उनका जितना देय था, वह सब देकर हाथ जोड़ दिये कि उनका भवन जितना और जैसा बनना था, वह बन गया है, अब उनको परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है.
न केवल इतना, अपितु इन्द्र ने वहीं से तत्काल वन के लिए प्रस्थान कर दिया, साथ में चटाई और कमण्डलु भी नहीं लिया.
इन्द्र के इस प्रकार सहसा देवलोक से विलुप्त हो जाने का समाचार गुरुदेव बृहस्पति को ज्ञात हुआ तो उन्होंने इन्द्र की खोज करवायी और उनसे कहा कि उनका इस प्रकार सहसा वन को चले जाना उचित नहीं है. उन्होंने समझाया कि सब कार्य अपने समय पर और अपने नियम के अनुसार ही होने चाहिए, भावुकता के आधार पर नहीं.
देवगुरु का उपदेश सुनकर इन्द्र को सद्बुद्धि आयी. उन्होंने लौटकर पुनः अपना राजपाट और इन्द्रासन सबकुछ सँभाल लिया और यथावसर उसको त्याग भी दिया.
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4. केंकड़े की कहानी / नारायण पण्डित
Story In Hindi: मालव देश में पद्मगर्भ नामक एक सरोवर है. वहाँ एक बूढ़ा बगुला सामर्थ्य रहित सोच में डूबे हुए के समान अपना स्वरुप बनाये बैठा था.
तब किसी कर्कट (केंकड़े) ने उसे देखा और पूछा– यह क्या बात है ? तुम भूखे प्यासे यहाँ क्यों बैठे हो ?
बगुला कहा — मच्छ (मछली) मेरे जीवनमूल हैं. उन्हें धीवर आ कर मारेंगे यह बात मैंने नगर के पास सुनी है. इसलिए जीविका के न रहने से मेरा मरण ही आ पहुँचा, यह जान कर मैंने भोजन में भी अनादर कर रक्खा है.
फिर मच्छों (मछली) ने सोचा — इस समय तो यह उपकार करने वाला ही दिखता है, इसलिए इसी से जो कुछ करना है सो पूछना चाहिये.
जैसा कहा है कि — उपकारी शत्रु के साथ मेल करना चाहिये और अपकारी मित्र के साथ नहीं करना चाहिये, क्योंकि निश्चय करके उपकार और अपकार ही मित्र और शत्रु के लक्षण हैं.
मच्छ बोले — हे बगुले, इसमें रक्षा का कौन सा उपाय है ?
तब बगुला बोला– दूसरे सरोवर का आश्रय लेना ही रक्षा का उपाय है. वहाँ मैं एक- एक करके तुम सबको पहुँचा देता हूँ.
मच्छ बोले — अच्छा, ले चला.
बाद में यह बगुला उन मच्छों को एक एक करनके ले जाकर खाने लगा.
इसके बाद कर्कट उससे बोला — हे बगुले, मुझे भी वहाँ ले चल.
फिर अपूर्व कर्कट के माँस का लोभी बगुले ने आदर से उसे भी वहाँ ले जा कर पटपड़ में धरा.
कर्कट भी मच्छों की हड्डियों से बिछे हुए उस पड़ाव को देख कर चिंता करने लगा– हाय मैं मन्दभागी मारा गया.
जो कुछ हो, अब समय के अनुसार उचित काम कर्रूँगा.
यह विचार कर कर्कट ने उसकी नाड़ काट डाली और बगुला मर गया.
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5.कौए का जोड़ा और काला साँप / नारायण पण्डित
Story In Hindi: किसी वृक्ष पर काग और कागली रहा करते थे, उनके बच्चे उसके खोड़र में रहने वाला काला सांप खाता था.
कागली पुनः गर्भवती हुई और काग से कहने लगी — “”हे स्वामी, इस पेड़ को छोड़ो, इसमें रहने वाला काला साँप हमारे बच्चे सदा खा जाता है.
अर्थात दुष्ट स्री, धूर्त मित्र, उत्तर देने वाला सेवक, सपं वाले घर में रहना, मानो साक्षात् मृत्यु ही है, इसमें संदेह नहीं है.
काग बोला — प्यारी, डरना नहीं चाहिए, बार- बार मैंने इसका अपराध सहा है, अब फिर क्षमा नहीं कर्रूँगा.
कागली बोली– किसी प्रकार ऐसे बलवान के साथ तुम लड़ सकते हो?
काग बोला — यह शंका मत करो.
अर्थात जिसको बुद्धि है उसको बल है और जो निर्बुद्धि है उसका बल कहाँ से आवे ?
कागली बोली — जो करना है करो.
काग बाला — यहाँ पास ही सरोवर में राजपुत्र नित्य आ कर स्नान करता है. स्नान के समय उसके अंग से उतार कर घाट पर रखे हुए सोने के हार को चोंच में पकड़ कर इस बिल्ले में ला कर धर दीजिये. पीछे एक दिन राजपुत्र के नहाने के लिए जल में उतरने पर कागली ने वही किया. फिर सोने के हार के पीछे ढूंढ़ते हुए खोखल में राजा के सिपाही ने उस वृक्ष के बिल में काले साँप को देखा और मार डाला.
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6. चंचलता से बुद्धि का नाश / पंचतंत्र
Story In Hindi: किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था. तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी. तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को चल देते. एक वर्ष उस प्रदेश में जरा भी बारिश नहीं हुई. धीरे-धीरे वह तालाब भी सूखने लगा.
अब हंसों को कछुए की चिंता होने लगी. जब उन्होंने अपनी चिंता कछुए से कही तो कछुए ने उन्हें चिंता न करने को कहा. उसने हंसों को एक युक्ति बताई. उसने उनसे कहा कि सबसे पहले किसी पानी से लबालब तालाब की खोज करें फिर एक लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर उसे उस तालाब में ले चलें.
उसकी बात सुनकर हंसों ने कहा कि वह तो ठीक है पर उड़ान के दौरान उसे अपना मुंह बंद रखना होगा. कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोलेगा.
कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दांत से पकड़ा फिर दोनो हंस उसे लेकर उड़ चले. रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में उड़ा जा रहा है तो वे आश्चर्य से चिल्लाने लगे.
लोगों को अपनी तरफ चिल्लाते हुए देखकर कछुए से रहा नहीं गया. वह अपना वादा भूल गया. उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा. ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया.
इसीलिए कहते हैं कि बुद्धिमान भी अगर अपनी चंचलता पर काबू नहीं रख पाता है तो परिणाम काफी बुरा होता है.
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7. जैसे को तैसा / पंचतंत्र
Story In Hindi: किसी नगर में एक व्यापारी का पुत्र रहता था. दुर्भाग्य से उसकी सारी संपत्ति समाप्त हो गई. इसलिए उसने सोचा कि किसी दूसरे देश में जाकर व्यापार किया जाए. उसके पास एक भारी और मूल्यवान तराजू था. उसका वजन बीस किलो था. उसने अपने तराजू को एक सेठ के पास धरोहर रख दिया और व्यापार करने दूसरे देश चला गया.
कई देशों में घूमकर उसने व्यापार किया और खूब धन कमाकर वह घर वापस लौटा. एक दिन उसने सेठ से अपना तराजू माँगा. सेठ बेईमानी पर उतर गया. वह बोला,
‘भाई तुम्हारे तराजू को तो चूहे खा गए.’ व्यापारी पुत्र ने मन-ही-मन कुछ सोचा और सेठ से बोला-
‘सेठ जी, जब चूहे तराजू को खा गए तो आप कर भी क्या कर सकते हैं! मैं नदी में स्नान करने जा रहा हूँ. यदि आप अपने पुत्र को मेरे साथ नदी तक भेज दें तो बड़ी कृपा होगी.’
सेठ मन-ही-मन भयभीत था कि व्यापारी का पुत्र उस पर चोरी का आरोप न लगा दे. उसने आसानी से बात बनते न देखी तो अपने पुत्र को उसके साथ भेज दिया.स्नान करने के बाद व्यापारी के पुत्र ने लड़के को एक गुफ़ा में छिपा दिया. उसने गुफा का द्वार चट्टान से बंद कर दिया और अकेला ही सेठ के पास लौट आया.
सेठ ने पूछा, ‘मेरा बेटा कहाँ रह गया?’ इस पर व्यापारी के पुत्र ने उत्तर दिया,
‘जब हम नदी किनारे बैठे थे तो एक बड़ा सा बाज आया और झपट्टा मारकर आपके पुत्र को उठाकर ले गया.’ सेठ क्रोध से भर गया.
उसने शोर मचाते हुए कहा-‘तुम झूठे और मक्कार हो. कोई बाज इतने बड़े लड़के को उठाकर कैसे ले जा सकता है? तुम मेरे पुत्र को वापस ले आओ नहीं तो मैं राजा से तुम्हारी शिकायत करुँगा’
व्यापारी पुत्र ने कहा, ‘आप ठीक कहते हैं.’ दोनों न्याय पाने के लिए राजदरबार में पहुँचे.
सेठ ने व्यापारी के पुत्र पर अपने पुत्र के अपहरण का आरोप लगाया. न्यायाधीश ने कहा, ‘तुम सेठ के बेटे को वापस कर दो.’
इस पर व्यापारी के पुत्र ने कहा कि ‘मैं नदी के तट पर बैठा हुआ था कि एक बड़ा-सा बाज झपटा और सेठ के लड़के को पंजों में दबाकर उड़ गया. मैं उसे कहाँ से वापस कर दूँ?’
न्यायाधीश ने कहा, ‘तुम झूठ बोलते हो. एक बाज पक्षी इतने बड़े लड़के को कैसे उठाकर ले जा सकता है?’
इस पर व्यापारी के पुत्र ने कहा, ‘यदि बीस किलो भार की मेरी लोहे की तराजू को साधारण चूहे खाकर पचा सकते हैं तो बाज पक्षी भी सेठ के लड़के को उठाकर ले जा सकता है.’
न्यायाधीश ने सेठ से पूछा, ‘यह सब क्या मामला है?’
अंततः सेठ ने स्वयं सारी बात राजदरबार में उगल दी. न्यायाधीश ने व्यापारी के पुत्र को उसका तराजू दिलवा दिया और सेठ का पुत्र उसे वापस मिल गया.
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8. तीन ठगों की कहानी / नारायण पण्डित
Story In Hindi: गौतम के वन में किसी ब्राह्मण ने यज्ञ करना आरंभ किया था. और उसको यज्ञ के लिए दूसरे गाँव से बकरा मोल ले कर कंधे पर रख कर ले जाते हुए तीन ठगों ने देखा.
फिर उन ठगों ने “”यह बकरा किसी उपाय से मिल जाए, तो बुद्धि की चालाकी बढ़ जाए
यह सोच कर तीनों तीन वृक्षों के नीचे, एक एक कोस की दूरी पर बैठ गए. और उस ब्राह्मण के आने की बाट देखने लगे.
वहाँ एक धूर्त ने जा कर उस ब्राह्मण से कहा — हे ब्राह्मण, यह क्या बात है कि कुत्ता कंधे पर लिये जाते हो ?
ब्राह्मण ने कहा — यह कुत्ता नहीं है, यज्ञ का बकरा है.
थोड़ी दूर जाने के बाद दूसरे धूर्त ने वैसा ही प्रश्न किया.
यह सुन कर ब्राह्मण बकरे को धरती पर रखकर बार- बार देखने लगा फिर कंधे पर रख कर चला पड़ा
क्योंकि सज्जनों की भी बुद्धि दुष्टों के वचनों से सचमुच चलायमान हो जाती है, जैसे दुष्टों की बातों से विश्वास में आ कर यह ब्राह्मण ऊँट के समान मरता है.
थोड़ी दूर चलने के बाद पुनः तीसरे धूर्त ने ब्राह्मण से वैसी ही बात कही.
उसकी बात सुन कर ब्राह्मण की बुद्धि का ही भ्रम समझ कर बकरे को छोड़ कर ब्राह्मण नहा कर घर चला गया.
उन धूर्तों ने उस बकरे को ले जा कर खा लिया.
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9. धूर्त गीदड़ की कहानी / नारायण पण्डित
Story In Hindi: मगध देश में चंपकवती नामक एक महान अरण्य था, उसमें बहुत दिनों में मृग और कौवा बड़े स्नेह से रहते थे. किसी गीदड़ ने उस मृग को हट्ठा- कट्ठा और अपनी इच्छा से इधर- उधर घूमता हुआ देखा, इसको देख कर गीदड़ सोचने लगा — अरे, कैसे इस सुंदर (मीठा) माँस खाऊँ ? जो हो, पहले इसे विश्वास उत्पन्न कराऊँ. यह विचार कर उसके पास जाकर बोला — हे मित्र, तुम कुशल हो ? मृग ने कहा “तू कौन है ?’ वह बोला — मैं क्षुद्रबुद्धि नामक गीदड़ हूँ. इस वन में बंधुहीन मरे के समान रहता हूँ, और सब प्रकार से तुम्हारा सेवक बन कर रहूँगा. मृग ने कहा — ऐसा ही हो, अर्थात रहा कर. इसके अनंतर किरणों की मालासे भगवान सूर्य के अस्त हो जाने पर वे दोनों मृग के घर को गये और वहाँ चंपा के वृक्ष की डाल पर मृग का परम मित्र सुबुद्धि नामक कौवा रहता था. कौए ने इन दोनों को देखकर कहा — मित्र, यह चितकवरा दूसरा कौन है ? मृग ने कहा — यह गीदड़ है. हमारे साथ मित्रता करने की इच्छा से आया है. कौवा बोला — मित्र, अनायास आए हुए के साथ मित्रता नहीं करनी चाहिये.
कहा भी गया है कि — जिसका कुल और स्वभाव नहीं जाना है, उसको घर में कभी न ठहराना चाहिए, क्योंकि बिलाव के अपराध में एक बूढ़ा गिद्ध मारा गया. यह सुनकर सियार झुंझलाकर बोला — मृग से पहले ही मिलने के दिन तुम्हारी भी तो कुल और स्वभाव नहीं जाना गया था. फिर कैसे तुम्हारे साथ इसकी गाढ़ी मित्रता हो गई.
जहाँ पंडित नहीं होता है, वहाँ थोड़े पढ़े की भी बड़ाई होती है. जैसे कि जिस देश में पेड़ नहीं होता है, वहाँ अरण्डाका वृक्ष ही पेड़ गिना जाता है. और दूसरे यह अपना है या पराया है, यह अल्पबुद्धियों की गिनती है. उदारचरित वालों को तो सब पृथ्वी ही कुटुंब है. जैसा यह मृग मेरा बंधु है, वैसे ही तुम भी हो. मृग बोला — इस उत्तर- प्रत्युत्तर से क्या है ? सब एक स्थान में विश्वास की बातचीत कर सुख से रहो. क्योंकि न तो कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु है. व्यवहार से मित्र और शत्रु बन जाते हैं. कौवे ने कहा — ठीक है. फिर प्रातःकाल सब अपने अपने मनमाने देश को गये. एक दिन एकांत में सियार ने कहा — मित्र मृग, इस वन में एक दूसरे स्थान में अनाज से भरा हुआ खेत है, सो चल कर तुझे दिखाऊँ. वैसा करने पर मृग वहाँ जा कर नित्य अनाज खाता रहा. एक दिन उसे खेत वाले ने देख कर फँदा लगाया. इसके बाद जब वहाँ मृग फिर चरने को आया सो ही जाल में फँस गया और सोचने लगा — मुझे इस काल की फाँसी के समान व्याध के फंदे से मित्र को छोड़कर कौन बचा सकता है ? इस बीच में सियार वहाँ आकर उपस्थित हुआ और सोचने लगा — मेरे छल की चाल से मेरा मनोरथ सिद्ध हुआ और इस उभड़े हुए माँस और लहू लगी हुई हड्डियाँ मुझे अवश्य मिलेंगी और वे मनमानी खाने के लिए होंगी. मृग उसे देख प्रसन्न होकर बोला — हो मित्र मेरा बंधन काटो और मुझे शीघ्र बचाओ.
आपत्ति में मित्र, युद्ध में शूर, उधार में सच्चा व्यवहार, निर्धनता में स्री और दु:ख में भाई (या कुटुंबी) परखे जाते हैं. और दूसरे विवाहादि उत्सव में, आपत्ति में, अकाल में, राज्य के पलटने में, राजद्वार में तथा श्मशान में, जो साथ रहता है, वह बांधव है. सियार जाल को बार- बार देख सोचने लगा — यह बड़ा कड़ा बंध है और बोला — “”मित्र, ये फँदे तांत के बने हुए हैं, इसलिए आज रविवार के दिन इन्हें दाँतों से कैसे छुऊँ मित्र जो बुरा न मानो तो प्रातः काल जो कहोगे, सो कर्रूँगा. ऐसा कह कर उसके पास ही वह अपने को छिपा कर बैठ गया. पीछे वह कौवा सांझ होने पर मृग को नहीं आया देख कर इधर- उधर ढ़ूढ़ते- ढ़ूंढ़ते उस प्रकार उसे (बंधन में) देख कर बोला — “”मित्र, यह क्या है ? मृग ने कहा — “”मित्र का वचन नहीं मानने का फल है.
जैसा कहा गया है कि जो मनुष्य अपने हितकारी मित्रों का वचन नहीं सुनता है, उसके पास ही विपत्ति है और अपने शत्रुओं को प्रसन्न करने वाला है. कौवा बोला — “”वह ठग कहाँ है ? मृग ने कहा — “”मेरे मांस का लोभी यहाँ ही कहाँ बैठा होगा ? कौवा बोला — मैंने पहले ही कहा था. मेरा कुछ अपराध नहीं है, अर्थात मैंने इसका कुछ नहीं बिगाड़ा है, अतएव यह भी मेरे संग विश्वासघात न करेगा, यह बात कुछ विश्वास का कारण नहीं है, क्योंकि गुण और दोष को बिना सोचे शत्रुता करने वाले नीचों से सज्जनों को अवश्य भय होता ही है. और जिनकी मृत्यु पास आ गयी है, ऐसे मनुष्य न तो बुझे हुए दिये की चिरांद सूंघ सकते हैं, न मित्रता का वचन सुनते हैं और न अर्रूंधती के तारे को देख सकते हैं.
पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले और मुख पर मीठी- मीठी बातें करने वाले मित्र को, मुख पर दूध वाले विष के घड़े के समान छोड़ देना चाहिए. कौवे ने लंबी सांस भर कर कहा कि — “”अरे ठग, तुझ पापी ने यह क्या किया ? क्योंकि अच्छे प्रकार से बोलने वालों को, मीठे- मीठे वचनों तथा मि कपट से वश में किये हुओं को, आशा करने वालों को, भरोसा रखने वालों को और धन के याचकों को, ठगना क्या बड़ी बात है ? और हे पृथ्वी, जो मनुष्य उपकारी, विश्वासी तथा भोले- भाले मनुष्य के साथ छल करता है उस ठग पुरुष को हे भगवति पृथ्वी, तू कैसे धारण करती है
दुष्ट के साथ मित्रता और प्रीति नहीं करनी चाहिये, क्योंकि गरम अंगारा हाथ को जलाता है और ठंढ़ा हाथ को काला कर देता है. दुर्जनों का यही आचरण है. मच्छर दुष्ट के समान सब चरित्र करता है, अर्थात् जैसे दुष्ट पहले पैरों पर गिरता है, वैसे ही यह भी गिरता है. जैसे दुष्ट पीठ पीछे बुराई करता है, वैसे ही यह भी पीठ में काटता है. जैसे दुष्ट कान के पास मीठी मीठी बात करता है, वैसे ही यह भी कान के पास मधुर विचित्र शब्द करता है और जैसे दुष्ट आपत्ति को देखकर निडर हो बुराई करता है, वैसे ही मच्छर भी छिद्र अर्थात् रोम के छेद में प्रवेश कर काटता है.
और दुष्ट मनुष्य का प्रियवादी होना यह विश्वास का कारण नहीं है. उसकी जीभ के आगे मिठास और हृदय में हालाहल विष भरा है. प्रातःकाल कौवे ने उस खेत वाले को लकड़ी हाथ में लिये उस स्थान पर आता हुआ देखा, उसे देख कर कौवे ने मृग से कहा — “”मित्र हरिण, तू अपने शरीर को मरे के समान दिखा कर पेट को हवा से फुला कर और पैरों को ठिठिया कर बैठ जा. जब मैं शब्द कर्रूँ तब तू झट उठ कर जल्दी भाग जाना. मृग उसी प्रकार कौवे के वचन से पड़ गया. फिर खेत वाले ने प्रसन्नता से आँख खोल कर उस मृग को इस प्रकार देखा, आहा, यह तो आप ही मर गया. ऐसा कह कर मृग की फाँसी को खोल कर जाल को समेटने का प्रयत्न करने लगा, पीछे कौवे का शब्द सुन कर मृग तुरंत उठ कर भाग गया. इसको देख उस खेत वाले ने ऐसी फेंक कर लकड़ी मारी कि उससे सियार मारा गया.
जैसा कहा गया है कि प्राणी तीन वर्ष, तीन मास, तीन पक्ष और तीन दिन में, अधिक पाप और पुण्य का फल यहाँ ही भोगता है.
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10. निष्पाप जीवन का रहस्य / विनोबा भावे
Story In Hindi: एक सज्जन ने एकनाथ से पूछा, “महाराज, आपका जीवन कितना सीधा-साधा और निष्पाप है! हमारा जीवन ऐसा क्यों नहीं? आप कभी किसी पर गुस्सा नहीं होते. किसी से लड़ाई झगड़ा नहीं, टंटा-बखेड़ा नहीं. कितने शांत, कितने प्रेमपूर्ण, कितने पवित्र हैं आप!”
एकनाथ ने कहा, “अभी मेरी बात छोड़ो. तुम्हारे संबंध में मुझे एक बात मालूम हुई है. आज से सात दिन के भीतर तुम्हारी मौत आ जायेगी.”
एकनाथ की कही बात को झूठ कौन मानता! सात दिन में मृत्यु! सिर्फ १६८ घंटे बाकी रहे! हे भगवान! यह क्या अनर्थ? वह मनुष्य जल्दी-जल्दी घर दौड़ गया. कुछ सूझ नहीं पड़ता था. आखिरी समय की, सब कुछ समेट लेने की, बातें कर रहा था. वह बीमार हो गया. बिस्तर पर पड़ गया. छ: दिन बीत गये. सातवें दिन एक नाथ उससे मिलने आये. उसने नमस्कार किया. एकनाथ ने पूछा, “क्या हाल है?”
उसने कहा, “बस अब चला!”
नाथजी ने पूछा, “इन छ: दिनों में कितना पाप किया? पाप के कितने विचार मन में आये?”
वह मरणासन्न व्यक्ति बोला, “नाथजी, पाप का विचार करने की तो फुरसत ही नहीं मिली. मौत एक-सी आंखों के सामने खड़ी थी.”
नाथजी ने कहा, “हमारा जीवन इतना निष्पाप क्यों है, इसका उत्तर अब मिल गया न?”
मरणरुपी शेर सदैव सामने खड़ा रहे, तो फिर पाप सूझेगा किसे?
Note: हमने यह सारे कहानी का संग्रह http://gadyakosh.org/ से किया है.
मुझे दिल से आशा है की आपको हमारी यह हिंदी कहानियों का संग्रह(Story In Hindi) अच्छा लगा होगा,अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट के द्वारा जरुर बताएं और हाँ इन कहानियों को शेयर करना न भूलें.
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